कंबोडिया के पीएम ने डोनाल्ड ट्रंप का नाम नोबेल शांति पुरस्कार के लिए पेश कर दिया फिर से।

क्या आपको भी déjà vu जैसा लग रहा है? कंबोडिया के प्रधानमंत्री हुन मानेत ने डोनाल्ड ट्रंप का नाम नोबेल शांति पुरस्कार के लिए भेज दिया है, और ये ट्रंप की तीसरी कोशिश है इस बड़े सम्मान के लिए। इससे पहले पाकिस्तान और इज़राइल के पीएम नेतन्याहू भी उनके नाम को अलग-अलग कूटनीतिक कदमों के लिए आगे बढ़ा चुके हैं।

कंबोडिया और थाईलैंड के बीच क्या हुआ था?

पिछले महीने कंबोडिया और थाईलैंड के बीच सालों का सबसे बड़ा सीमा विवाद छिड़ गया था—तोप, रॉकेट और 3 लाख से ज्यादा लोग बेघर। फिर अचानक, जैसे किसी फिल्म में मोड़ आता है, जुलाई के आखिरी हफ्ते में ट्रंप का एक फोन आया और माहौल बदल गया। 28 जुलाई को मलेशिया में युद्धविराम हुआ, जिसमें अमेरिका, मलेशिया और चीन की भी भूमिका रही।

विवाद का एक नज़र में सारांश
कारण विवरण
मौतें करीब 43 लोग दोनों तरफ से मारे गए
बेघर लोग 3 लाख से ज्यादा लोग घर छोड़ने पर मजबूर
शुरुआत कैसे हुई सीमा पर लैंडमाइन धमाका
कूटनीतिक कदम ट्रंप का 26 जुलाई को फोन → 28 जुलाई को मलेशिया में युद्धविराम
व्यापार पहलू कंबोडियाई निर्यात पर लगने वाले शुल्क को 49% से घटाकर लगभग 19% किया गया
हुन मानेत ने ट्रंप को क्यों नामित किया?

हुन मानेत ने ट्रंप की “असाधारण नेतृत्व क्षमता” और “दूरदर्शी कूटनीति” की तारीफ करते हुए उन्हें कंबोडिया और थाईलैंड के बीच स्थिरता बहाल करने का श्रेय दिया। यह सिर्फ राजनीतिक प्रशंसा नहीं, बल्कि एक बड़ा कूटनीतिक संदेश था।

इससे पहले कंबोडिया के उप-प्रधानमंत्री सुन चंथोल ने इशारा किया था कि नामांकन होगा, और उन्होंने युद्धविराम के साथ-साथ शुल्क राहत को भी बड़ा कारण बताया जो कंबोडिया के टेक्सटाइल उद्योग के लिए बहुत जरूरी था।

और क्या चल रहा है? बड़ा संदर्भ

ट्रंप सिर्फ इस नामांकन पर ही नहीं टिके हैं। वे हाल के महीनों में कई मोर्चों पर “शांति दूत” की छवि बना रहे हैं दक्षिण एशिया से लेकर नागोर्नो-काराबाख तक और उनके हाल के समझौते और युद्धविराम उनके इस नए ग्लोबल पॉलिटिशियन रूप को और मजबूत कर रहे हैं।

निष्कर्ष

तो हाँ, ट्रंप को लेकर नोबेल शांति पुरस्कार वाली चर्चा में अब एक नया मोड़ आ गया है कंबोडिया के पीएम ने उन्हें एक आधुनिक शांति निर्माता की तरह पेश किया है। अब यह नोबेल कमेटी पर है कि वे क्या फैसला करती है। लेकिन एक बात तो साफ है कूटनीति, टैरिफ और युद्धविराम के फोन कॉल को एक ही वाक्य में देखना आम बात नहीं है, फिर भी हम यहां हैं।

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