कंबोडिया ने थाईलैंड सीमा संघर्ष के बीच तुरंत युद्धविराम की अपील की।

कंबोडिया ने थाईलैंड के साथ तुरंत और बिना शर्त युद्धविराम की अपील की है, क्योंकि दोनों देशों के बीच लंबे समय से चले आ रहे सीमा विवाद ने एक बार फिर उग्र रूप ले लिया है। कंबोडिया के संयुक्त राष्ट्र राजदूत छेआ केओ ने यह अपील संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आपात बैठक में की, जहां दोनों पक्षों ने एक-दूसरे पर गोले, रॉकेट और आक्रामकता के आरोप बरसाए।

संघर्ष की शुरुआत कैसे हुई?

24 जुलाई 2025 को ता मुएन थोम मंदिर के पास एक लैंडमाइन विस्फोट में थाई सैनिक घायल हो गए, जिससे तनाव फिर से भड़क उठा। इसके बाद लड़ाई कई सीमा बिंदुओं तक फैल गई, जिनमें थाईलैंड का त्रात और कंबोडिया का पुरसत भी शामिल है जो एक-दूसरे से करीब 100 किलोमीटर दूर हैं।

यह विवाद वर्षों पुराना है और इसकी जड़ें उपनिवेश काल के नक्शों और ऐतिहासिक स्थलों जैसे प्रेह विहार और ता मुएन थोम मंदिर पर दोनों देशों के दावों में छुपी हैं।

जान-माल का नुकसान और विस्थापन

तीन दिन से जारी इस संघर्ष में अब तक कम से कम 32 लोगों की जान जा चुकी है: थाईलैंड में 19 (सैनिक और नागरिक दोनों) और कंबोडिया में 13। वहीं, 1.3 लाख से अधिक लोग अपने घर छोड़कर स्कूलों, मंदिरों और विश्वविद्यालयों में शरण ले रहे हैं।

श्रेणी कंबोडिया थाईलैंड
नागरिक मृतक ~8 ~13
सैनिक मृतक ~5 ~6
विस्थापित लोग ~23,000 ~1,07,000+
कंबोडिया की कूटनीतिक पहल और वैश्विक प्रतिक्रिया

संयुक्त राष्ट्र में, कंबोडिया ने केवल युद्धविराम की नहीं, बल्कि थाईलैंड के कथित हमलों की अंतरराष्ट्रीय निंदा की भी मांग की। उनका कहना था कि थाईलैंड ने मलेशिया की मध्यस्थता से सहमति जताई थी, लेकिन बाद में पीछे हट गया।

वहीं, थाईलैंड ने भी संयुक्त राष्ट्र में अपील की कि कंबोडिया को हमले रोकने चाहिए और आपसी बातचीत से समाधान निकालना चाहिए। इस बीच मलेशियाई प्रधानमंत्री अनवर इब्राहिम के नेतृत्व में ASEAN ने दोनों पक्षों से संघर्ष विराम की अपील की और मध्यस्थता की पेशकश की। कंबोडिया ने ASEAN की पहल को समर्थन दिया है, जबकि थाईलैंड ने “सैद्धांतिक सहमति” जताई, लेकिन जोर दिया कि वह द्विपक्षीय समाधान को प्राथमिकता देता है।

इसका महत्व क्यों है?

यह झड़प पिछले एक दशक में कंबोडिया और थाईलैंड के बीच सबसे घातक संघर्ष मानी जा रही है, जो 2011 के टकराव से भी अधिक गंभीर है। भारी हथियारों, हवाई हमलों और रॉकेटों के इस्तेमाल ने धार्मिक स्थलों के विनाश और मानवाधिकार उल्लंघनों की आशंका बढ़ा दी है।

निष्कर्ष

कंबोडिया की युद्धविराम की अपील एक नाजुक समय पर आई है, जब हर मिनट कीमती साबित हो सकता है। बढ़ती मौतों और लाखों के विस्थापन के बीच अब फैसला नेताओं के हाथ में है क्या वे कूटनीति को मौका देंगे या इतिहास को दोहराएंगे?

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