थाईलैंड की प्रधानमंत्री पैतोंगटार्न शिनावात्र लीक कॉल के चलते बर्खास्तगी की कगार पर।

थाईलैंड की राजनीति में बड़ा भूचाल आया है। प्रधानमंत्री पैतोंगटार्न शिनावात्र और कम्बोडिया के पूर्व प्रधानमंत्री हुन सेन के बीच हुई एक निजी कॉल लीक हो गई है। इस कॉल ने सत्ता गठबंधन को तोड़ा, विरोध की आग भड़काई, और अब तो उन्हें पद से हटाने की मांग जोर पकड़ रही है।

कॉल में ऐसा क्या था जो बवाल मच गया?

15 जून 2025 को पैतोंगटार्न और हुन सेन के बीच करीब 17 मिनट की बातचीत हुई। यह बातचीत सीमा पर 28 मई को हुई गोलीबारी को शांत करने की कोशिश थी। लेकिन जब 18 जून को कम्बोडिया के सीनेट अध्यक्ष ने इस कॉल के 9 मिनट लीक कर दिए, तो देश में तूफान आ गया।

कॉल के मुख्य बिंदु:

  • पैतोंगटार्न ने हुन सेन को “अंकल” कहकर संबोधित किया—कुछ लोगों को यह बहुत निजी और अपमानजनक लगा।

  • उन्होंने थाईलैंड के सेकंड आर्मी कमांडर को “विरोधी” कहा—जिसे सेना और राष्ट्रवादी ताकतों ने सेना के अपमान के तौर पर लिया।

यानी एक निजी बातचीत अब सार्वजनिक संकट बन गई है।

गठबंधन टूटा, राजनीतिक भूचाल
🚪 समर्थन वापसी
  • भूमजैथाई पार्टी, जो गठबंधन की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी थी, सरकार से अलग हो गई। उनका आरोप था कि प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय संप्रभुता से समझौता किया है।

  • यूनाइटेड थाई नेशन (UTN) पार्टी ने भी साफ कर दिया कि अगर पैतोंगटार्न इस्तीफा नहीं देतीं, तो उनका समर्थन वापस लिया जा सकता है।

इससे संसद में बहुमत अल्पमत में बदल गया—सरकार अब कमजोर हालत में है।

🏛️ सीनेट की कार्रवाई

सीनेट अध्यक्ष और 35 अन्य सांसदों ने संवैधानिक अदालत और नैतिकता आयोग (NACC) में शिकायत दी। उनका आरोप है कि पीएम ने संविधान का उल्लंघन किया और देश की सुरक्षा को खतरे में डाला।

संकट की स्थिति – एक नज़र में सारांश
क्षेत्र तत्काल प्रभाव संभावित नतीजा
राष्ट्रीय एकता सेना पर टिप्पणी से भारी नाराज़गी संबंध सुधारने की कोशिश
सरकार की स्थिरता प्रमुख पार्टी अलग, बहुमत खत्म विश्वास मत या नई सरकार
कानूनी प्रक्रिया संवैधानिक अदालत में मामला पीएम का निलंबन संभव
जनता की प्रतिक्रिया विरोध प्रदर्शन, यूनियन नाराज़ 28 जून को बड़ी रैली
विदेशी संबंध कम्बोडियाई राजदूत को बुलाया गया सीमा विवाद और तनाव बढ़ा
किसने क्या कहा?
  • पैतोंगटार्न ने स्वीकार किया कि कॉल असली थी, माफी मांगी, और सफाई दी कि यह “डैमेज कंट्रोल” के तहत की गई थी।

  • उन्होंने बाद में सेकंड आर्मी कमांडर से उबोन रचठानी में मुलाकात भी की ताकि स्थिति सुधारी जा सके।

  • पर्यटन मंत्री और उनके करीबी सहयोगी सोरवोंग थियनथोंग ने कहा कि पीएम न इस्तीफा देंगी और न ही संसद भंग करेंगी।

क्या वो संकट से बाहर आ पाएंगी?

संभावनाएं इस तरह दिखती हैं:

  • संवैधानिक अदालत का फैसला अहम है। अगर निलंबन हुआ तो पद जाना तय है।

  • गठबंधन दरक चुका है—अगर UTN के सांसद भी साथ छोड़ते हैं तो सरकार गिर सकती है।

  • सेना और राजशाही का गुस्सा—थाईलैंड में 1932 से अब तक 13 बार तख्तापलट हो चुका है। सेना पर टिप्पणी को हल्के में नहीं लिया जाता।

  • जन आंदोलन—28 जून को पैतोंगटार्न के इस्तीफे की मांग को लेकर बड़ा प्रदर्शन प्रस्तावित है।

राजनीति से बाहर क्यों मायने रखता है ये मामला?

आप सोच सकते हैं—राजनीति है, होगा ही। लेकिन असल असर बहुत बड़ा है:

  • शेयर बाज़ार में गिरावट—थाई स्टॉक इंडेक्स 5 साल के निचले स्तर पर आ गया है।

  • अर्थव्यवस्था और कूटनीति पर असर—कम्बोडिया से संबंध खराब होना, व्यापार और पर्यटन पर बुरा असर डाल सकता है।

  • लोकतंत्र की दिशा—अगर फिर एक प्रधानमंत्री अदालत या सेना के जरिए हटती हैं, तो ये लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर सवाल खड़ा करता है।

आगे क्या हो सकता है?
  • संवैधानिक अदालत का फैसला (जुलाई?): पीएम को निलंबित या पदच्युत किया जा सकता है।

  • नई सरकार या चुनाव?: अगर संसद टूटती है, तो जल्द चुनाव संभव है—या फ्यू थाई पार्टी नया पीएम पेश कर सकती है, जैसे चायकासेम नितिसिरी

  • सेना की सतर्कता: तख्तापलट की चर्चा अभी दूर है, लेकिन सेना सतर्क है।

  • राजनयिक समाधान: थाई विदेश मंत्रालय ने कम्बोडियाई राजदूत को बुलाया और विरोध जताया—तनाव कम करने की कोशिश जारी है।

निष्कर्ष

ये विवाद सिर्फ एक कॉल का मामला नहीं है—ये थाईलैंड के लोकतंत्र की परीक्षा है। एक लीक हुई बातचीत ने सरकार की नींव हिला दी है। गठबंधन टूटा, कोर्ट में मामला गया, सड़कों पर प्रदर्शन तय है। अब सवाल है—क्या अदालत और संसद पीएम का साथ देंगी या उनकी विदाई तय है?

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