थाईलैंड में राजनीतिक उथल-पुथल: क्यों इकोनथाई संसद भंग करने के खिलाफ चेतावनी दे रहा है

थाईलैंड इस वक्त एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है जहां सबकी सांसें अटकी हुई हैं। अफवाहें हैं कि सरकार संसद को भंग कर सकती है—और इसकी वजह है प्रधानमंत्री पायथोंगटार्न शिनावात्रा की एक लीक हुई कॉल। लेकिन इकोनथाई (थाईलैंड का शीर्ष नियोक्ता संगठन) इस पर जोर से ब्रेक लगाने की बात कर रहा है। उनका कहना है कि अभी अगर संसद भंग की गई, तो अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हो सकता है। आइए, जानते हैं क्यों।

संसद भंग करना इतना बड़ा मुद्दा क्यों है?

संसद को भंग करने का मतलब है—फिलहाल के सभी सांसदों को हटाकर फिर से चुनाव कराना। सुनने में लोकतांत्रिक लगता है, है ना? पर बात ये है कि इसमें वक्त लगता है। इकोनथाई के उपाध्यक्ष थानित सोरात के मुताबिक, ये पूरा प्रोसेस 5–6 महीने ले सकता है। यानी आधे साल तक कोई नई नीति नहीं, कोई बजट मंजूर नहीं, और निवेशक हर फैसला टालते रहेंगे।

इकोनथाई का साफ संदेश: अभी नहीं!
राजनीतिक शून्य से बढ़ेगी अनिश्चितता

थानित सोरात राजनीति नहीं, बल्कि अर्थव्यवस्था की बात कर रहे हैं। संसद के बिना कोई नीतियां लागू नहीं हो सकतीं। सोचिए, अगर आप सफर पर निकलें और जीपीएस बंद हो, तो रास्ता कितना मुश्किल लगेगा। यही हाल व्यापारियों और निवेशकों का होता है जब सरकार की दिशा स्पष्ट नहीं होती।

बजट पर ब्रेक लग जाएगा

थाईलैंड सरकार 3.78 ट्रिलियन बाट के बजट पर काम कर रही है (2026 के लिए)। अगर संसद भंग होती है, तो यह पूरा बजट अटक जाएगा। न कोई विकास योजनाएं, न सामाजिक योजनाएं, न ही निवेश—सब रुक जाएगा। ये डर सिर्फ कल्पना नहीं, हकीकत है।

आखिर मामला इतना गर्म क्यों है?

कुछ अहम वजहें हैं:

  • लीक हुई कॉल: पीएम पायथोंगटार्न और कंबोडिया के पूर्व पीएम हुन सेन की एक कॉल लीक हो गई। इसने राजनीतिक हलचल और आरोप-प्रत्यारोप को जन्म दिया।

  • गठबंधन की कमजोरी: भूमजयथाई पार्टी ने समर्थन वापस ले लिया है, जिससे सरकार की स्थिति कमजोर हो गई है।

  • अर्थव्यवस्था की सुस्ती: व्यापार धीमा है, अमेरिकी टैरिफ का संकट है, और कंबोडिया से सीमा विवाद चल रहा है—सभी मिलकर हालात नाजुक बना रहे हैं।

अगर संसद भंग हुई तो क्या दांव पर लगेगा
आर्थिक क्षेत्र संसद भंग होने से पहले अगर संसद भंग हुई तो
बजट और नीति 3.78 ट्रिलियन बाट का बजट तैयार, योजनाएं चालू बजट अटका रहेगा, योजनाएं रुकी रहेंगी
निवेश और व्यापार विश्वास धीरे-धीरे सुधार हो रहा है नए सौदे टल जाएंगे, बाजार में अस्थिरता
व्यापार वार्ता (खासतौर पर अमेरिका) टैरिफ घटाने की बातचीत जारी वार्ता में देरी, जिससे निर्यात महंगा हो सकता है
पर्यटन और घरेलू मांग महामारी के बाद धीरे-धीरे रिकवरी राजनीतिक अनिश्चितता पर्यटकों को डरा सकती है, खर्च में गिरावट
आगे क्या हो सकता है?
बाजार में तुरंत हड़कंप

बाजार अनिश्चितता से डरता है। इस वक्त निवेशकों का विश्वास पहले से ही कमजोर है। थाईलैंड मंदी की कगार पर है, और अगर संसद भंग होती है तो हालात और बिगड़ सकते हैं।

व्यापार वार्ता पर ब्रेक

थाईलैंड इस वक्त अमेरिका से टैरिफ घटाने की बातचीत कर रहा है। अगर घरेलू राजनीति सबका ध्यान खींच ले, तो ये बातचीत ठंडे बस्ते में चली जाएगी—जिससे थाई निर्यातकों को भारी घाटा हो सकता है।

ज़मीन से उठती आवाज़ें
  • SCB के पून्यावत स्रीसिंग का कहना है कि अर्थव्यवस्था पहले से ही कमजोर है, और अगर संसद भंग होती है, तो बची-खुची रफ्तार भी खत्म हो जाएगी।

  • थाई इंडस्ट्री फेडरेशन (FTI) का मानना है कि स्थिर कैबिनेट और अनुभवी मंत्री ज्यादा ज़रूरी हैं, न कि बार-बार चुनाव।

  • किचारोएन इंजीनियरिंग जैसी कंपनियां भी कह रही हैं कि निवेशक पहले ही पीछे हट रहे हैं—हालांकि ग्रीन एनर्जी जैसे सेक्टर्स कुछ राहत दे सकते हैं।

समाधान क्या हो सकता है?
गठबंधन को मज़बूत करें, संसद न भंग करें

अगर पीएम अपने कैबिनेट में फेरबदल कर लें और भूमजयथाई पार्टी से सुलह कर लें, तो हालात संभाले जा सकते हैं। बजट आगे बढ़ेगा, निवेशकों को भरोसा मिलेगा और स्थिरता बनी रहेगी।

पीएम इस्तीफा दे सकते हैं—इकोनथाई का सुझाव

थानित सोरात ने एक विकल्प सुझाया है: प्रधानमंत्री इस्तीफा दें। इससे सरकार का चेहरा बदलेगा, लेकिन संसद बनी रहेगी। यह सर्जरी की तरह है—पूरा सिस्टम हटाने से बेहतर है कि सिर्फ एक हिस्सा बदला जाए।

आपके लिए इसका क्या मतलब है?

थाईलैंड सिर्फ एक देश नहीं, बल्कि वैश्विक सप्लाई चेन, पर्यटन, और पड़ोसी देशों से जुड़ा एक नेटवर्क है। जब संसद रुकती है, तो ये सभी गतिविधियां भी थम जाती हैं। और इसका असर हम सब पर पड़ता है—महंगाई बढ़ती है, नौकरियां अटकती हैं और भरोसा कमजोर होता है।

निष्कर्ष

संसद भंग करना शायद “रीसेट” जैसा लगे, लेकिन इकोनथाई साफ कह रहा है—अभी नहीं। आर्थिक हालत कमजोर है, व्यापार वार्ताएं अधूरी हैं और सीमाई विवाद सुलझे नहीं हैं। ऐसे में सरकार का रुकना पूरे सिस्टम को डगमगा सकता है। अगर बदलाव चाहिए, तो वह संसद के भीतर किया जाए—न कि उसे खत्म करके। स्थिरता से ही विकास की रफ्तार बनी रह सकती है।

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