जब हम थाईलैंड की वित्तीय असमानता की बात करते हैं, तो यह सिर्फ कुछ आंकड़ों की बात नहीं है—यह एक गहरी, पुरानी और जटिल समस्या है। देश की कुल संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा सिर्फ एक बहुत छोटे वर्ग के पास है। 2016 में Credit Suisse ने रिपोर्ट दी थी कि थाईलैंड दुनिया के सबसे असमान देशों में से एक है—रूस और भारत के बाद तीसरे नंबर पर। यहां टॉप 1% के पास देश की लगभग 58% संपत्ति है, और टॉप 10% के पास लगभग 79–85% संपत्ति है।
मतलब? ज़्यादातर लोग ज़िंदगी की बुनियादी ज़रूरतें पूरी करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। निचले 40% लोगों के पास तो कुल संपत्ति का एक छोटा-सा टुकड़ा ही है। और ज़्यादा चौंकाने वाली बात? देश की ज़मीन का करीब 80% हिस्सा सिर्फ टॉप 20 मालिकों के पास है, जबकि नीचे के 20% लोगों के पास सिर्फ 0.3% ज़मीन है।
गिनी कोएफिशिएंट — आंकड़े झूठ नहीं बोलते
गिनी कोएफिशिएंट वो पैमाना है जिससे असमानता मापी जाती है। इसमें 0 मतलब सब कुछ बराबर और 100 मतलब पूरी असमानता। थाईलैंड का गिनी स्कोर 2000 में 43 था, जो 2010 तक गिरकर 39 हुआ। 2015 से 2019 के बीच यह 38 से 40 के बीच बना रहा।
थोड़ी-बहुत सुधार तो हुआ है, लेकिन अब भी थाईलैंड अपने कई एशियाई पड़ोसियों से ज़्यादा असमान है। गरीबी की दर ज़रूर घटी है—2014 में 10.5% से घटकर 2015 में 7.2% हो गई—लेकिन अमीर और गरीब के बीच की खाई अब भी बहुत गहरी है।
गांवों की मुश्किलें और कर्ज का बोझ
थाईलैंड के ग्रामीण इलाकों में लोग सबसे ज़्यादा प्रभावित हैं। 2022 के अंत तक घरेलू कर्ज GDP का लगभग 87–89% हो चुका था, जो एशिया में सबसे ऊंचा है। एक सर्वे के मुताबिक करीब 25% थाई लोगों के पास खर्चों और कर्ज चुकाने के बाद कुछ भी बचता नहीं।
इस पर भी एक और परेशानी—थाईलैंड की “इनफॉर्मल इकोनॉमी” यानी बिना सरकारी रजिस्ट्रेशन के चलने वाला व्यापार, जो GDP का करीब 40% है। इसका मतलब है कि इन लोगों को सरकार की कोई सुरक्षा या मदद नहीं मिलती।
असमानता क्यों बनी हुई है?
ये सिर्फ एक कारण से नहीं, बल्कि कई वजहों से है:
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भूमि पर एकाधिकार: अमीरों के पास ज़्यादातर ज़मीन है, गरीबों के पास बहुत कम।
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कम वित्तीय जानकारी: लोगों को बजट, सेविंग्स और कर्ज की जानकारी नहीं, जिससे वे आसानी से कर्ज के जाल में फंस जाते हैं।
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अनुचित टैक्स सिस्टम: VAT जैसे टैक्स गरीबों पर ज़्यादा भार डालते हैं, जबकि अमीर लोग टैक्स बचा लेते हैं।
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मजदूरों के साथ भेदभाव: खासकर प्रवासी मजदूर और महिलाएं कम तनख्वाह और कम अधिकारों के साथ जीते हैं।
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लैंगिक वेतन अंतर: महिलाएं पुरुषों के मुकाबले औसतन सिर्फ 84% वेतन पाती हैं।
आंकड़ों में देखें असमानता
मापदंड | थाईलैंड में स्थिति | टिप्पणी |
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टॉप 1% की संपत्ति हिस्सेदारी | ~58% | पूरा देश एक छोटे वर्ग के पास |
टॉप 10% की संपत्ति हिस्सेदारी | ~79–85% | असमानता बहुत गहरी |
गिनी कोएफिशिएंट (2015–2019) | ~38–40 | थोड़ी-सी गिरावट, मगर समस्या बनी हुई है |
गरीबी दर | 2014 में 10.5% → 2015 में 7.2% | सुधार दिखता है |
घरेलू कर्ज-GDP अनुपात | ~87–89% | एशिया में सबसे ज़्यादा |
ज़मीन का वितरण | 80% ज़मीन टॉप 20 के पास | बेहद असमान |
लिंग आधारित वेतन अंतर | महिलाएं पुरुषों से 84% कम कमाती हैं | साफ लैंगिक भेदभाव |
अब तक क्या हुआ, क्या बाकी है?
✔️ अब तक के सुधार
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गिनी स्कोर में थोड़ी गिरावट आई है।
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गरीबी में कमी हुई है।
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वित्तीय शिक्षा पर थोड़ी जागरूकता बढ़ी है।
❗ अब भी जो दिक्कतें हैं
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टैक्स सिस्टम को ज़्यादा प्रगतिशील बनाना होगा।
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भूमि नीति में सुधार ज़रूरी है।
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वित्तीय साक्षरता को जन-जन तक पहुंचाना होगा।
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कामगारों की सुरक्षा खासकर महिलाओं और प्रवासियों के लिए मज़बूत करनी होगी।
आगे क्या करना चाहिए?
तो क्या किया जा सकता है? कुछ ठोस सुझाव:
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उचित टैक्स नीति लागू की जाए—अमीर ज़्यादा टैक्स दें, गरीबों को राहत मिले।
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भूमि सुधार—ज़मीन पर सीमा तय हो ताकि गरीबों को भी बराबरी का मौका मिले।
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वित्तीय शिक्षा—स्कूलों और समुदायों में सेविंग्स, बजट और निवेश पर प्रोग्राम हों।
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समाज कल्याण स्कीम—लक्षित सब्सिडी और मदद दी जाए।
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मजदूरों के अधिकार—प्रवासी और महिलाओं के लिए कड़े कानून और निगरानी ज़रूरी है।
निष्कर्ष: एक टूटा हुआ संतुलन
थाईलैंड की अर्थव्यवस्था दो चेहरों वाली है—एक तरफ बढ़ती समृद्धि, दूसरी तरफ गहराती असमानता। जहां कुछ लोगों की दौलत आसमान छू रही है, वहीं करोड़ों लोग ज़िंदगी की बुनियादी ज़रूरतों के लिए जूझ रहे हैं।
हालांकि कुछ सुधार हुए हैं, लेकिन असली बदलाव तभी आएगा जब टैक्स, ज़मीन, शिक्षा और मज़दूर सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में ठोस कदम उठाए जाएंगे। असमानता मिटाना सिर्फ पैसों की बात नहीं है—ये इंसाफ, स्थायित्व और देश के भविष्य की बात है।