तो बात कुछ यूं है: थाई एयरवेज़ ने उन सभी अफवाहों को सिरे से खारिज कर दिया है जिनमें कहा जा रहा था कि उनकी बड़ी बोइंग डील पर अमेरिका का दबाव था। कंपनी का साफ कहना है कि ये एक रणनीतिक और व्यवसायिक फैसला है न कि कोई राजनीतिक समझौता।
पुनरुद्धार की योजना, न कि कोई कूटनीतिक डील
थाई एयरवेज़ ने जो 80 विमानों की डील की है (जिसमें 45 पक्के ऑर्डर हैं और 35 वैकल्पिक) वो उसके वित्तीय पुनरुद्धार प्लान का हिस्सा है। यह कोई अचानक लिया गया फैसला नहीं था, और न ही अमेरिका के साथ किसी व्यापारिक समझौते का नतीजा। एक अधिकारी ने साफ कहा, “यह विमान खरीद योजना रिहैबिलिटेशन प्लान के दौरान बनाई गई थी, और इसका किसी भी अमेरिकी दबाव से कोई लेना-देना नहीं है।”
कंपनी के टॉप बॉस क्या कह रहे हैं
थाई एयरवेज़ के CEO, चाई एमसिरी ने जोर देकर कहा: “2023 के अंत से अब तक, किसी भी राजनीतिक दबाव या बाहरी हस्तक्षेप की बात नहीं हुई है।” वहीं वित्त मंत्रालय के अध्यक्ष लवरोंग संग्सनित ने भी कहा कि यह फैसला पूरी तरह पेशेवर और स्वतंत्र था।
बोइंग डील की एक झलक
विवरण | जानकारी |
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पक्के ऑर्डर | 45 बोइंग विमान (2023 के अंत में फाइनल किए गए) |
वैकल्पिक विमान | 35 विमानों का विकल्प, भविष्य की ज़रूरतों के अनुसार |
राजनीतिक हस्तक्षेप | कंपनी ने किसी भी अमेरिकी दबाव से साफ इनकार किया |
डिलीवरी टाइमलाइन | 2028 की शुरुआत से विमान मिलने शुरू हो जाएंगे |
निर्णय का आधार | विमान की उपयुक्तता, रूट डिमांड, समयबद्धता और रणनीति के अनुसार |
थाई एयरवेज़ इस सौदे को एक स्मार्ट, फायदे वाला बिज़नेस मूव मानती है ना कि किसी कूटनीतिक मजबूरी का हिस्सा।
आखिर ये सब इतना जरूरी क्यों है?
देखिए, थाई एयरवेज़ हाल ही में बड़ी वित्तीय चुनौतियों से उबरी है। ऐसे में अगर कोई राजनीतिक दखल की बात होती है, तो निवेशकों और जनता का भरोसा डगमगा सकता है। इसलिए कंपनी बार-बार यह साफ कर रही है कि अब वो खुद अपने फैसले ले रही है बिना किसी बाहरी दबाव के।
निष्कर्ष
सीधी बात: बोइंग डील किसी व्यापारिक सौदेबाज़ी का हिस्सा नहीं है, बल्कि थाई एयरवेज़ की वापसी की एक अहम कहानी है। 2028 से नए विमान आने लगेंगे, और कंपनी अब खुद अपनी उड़ान तय कर रही है किसी और की नहीं।