थाईलैंड सरकार ने हाल ही में 157 अरब बाट का एक प्रोत्साहन पैकेज घोषित किया, जिसका मकसद देश की अर्थव्यवस्था को गति देना था। लेकिन जब फुकेत के सांसद चालेर्मपोंग सैंगडी ने खुलासा किया कि पूरे बजट में से फुकेत को केवल 267.34 मिलियन बाट मिले हैं—जो उसे 77 में से 75वें स्थान पर रखते हैं—तो गुस्सा फूट पड़ा।
प्राथमिकताएं गलत जगह?
जैसे किसी पार्टी में सबसे मेहनती मेहमान को ही भूखा छोड़ दिया जाए—कुछ वैसा ही हुआ है फुकेत के साथ। उदाहरण के तौर पर, नखोन रत्चासीमा को 3.5 अरब बाट मिले—जो फुकेत से 13 गुना ज्यादा हैं। सांसद चालेर्मपोंग ने सीधे कहा: “ये किसी आर्थिक मदद से ज़्यादा, एक राजनीतिक तैयारी लगती है।”
टैक्स इंजन को नज़रअंदाज़ करना
फुकेत देश की अर्थव्यवस्था और टैक्स में बड़ा योगदान देता है। इसके बावजूद जब पैसे बांटे गए तो यहां सिर्फ चुप्पी रही। सांसद ने इस फंडिंग को “अपमान” और “विश्वासघात” बताया।
प्रांत | अनुदान राशि (B THB) | स्थान |
---|---|---|
फुकेत | 0.267 | 75 / 77 |
नखोन रत्चासीमा | ~3.5 | शीर्ष 3 में |
औसत प्रति प्रांत | ~2.04 | — |
ये आंकड़े खुद बोलते हैं। पहले ही अवैध टूर ऑपरेटरों और वीज़ा नियमों की ढील से परेशान फुकेत को अब सरकारी बेरुखी भी झेलनी पड़ रही है।
सियासी चाल या बजट में कटौती?
सांसद ने यह भी इशारा किया कि जिन प्रांतों के सांसद सरकार में हैं, उन्हें ज्यादा पैसा मिला, जबकि विपक्ष के गढ़ों को नजरअंदाज़ कर दिया गया। “क्या ये इसलिए कि मेरे नाम के आगे सही उपनाम नहीं है?” चालेर्मपोंग ने तंज कसा।
यह पूरी तरह एक राजनीतिक शतरंज बन चुका है, और फुकेत जैसे अहम मोहरे को बेंच पर बैठा दिया गया है।
रिकवरी का रोडमैप या ठुकराना?
सांसद ने चेतावनी दी: अगर विकेंद्रीकरण नहीं हुआ तो फुकेत को बार-बार नज़रअंदाज़ किया जाता रहेगा। वीज़ा घोटालों और गांजे की छूट जैसे मुद्दों ने पहले ही शहर की छवि पर असर डाला है, और फिर भी मदद के नाम पर कुछ नहीं।
“अगर फुकेत खुद फैसले ले सके, तो हम हर एक बाट को ज़्यादा समझदारी से खर्च करेंगे, जितना कि कोई बैंकॉक में बैठा अधिकारी कर पाए,” सांसद ने कहा।
पर्यटन के लिए क्यों ज़रूरी है यह मामला?
फुकेत कोई आम प्रांत नहीं—यह थाईलैंड की सोने की अंडा देने वाली मुर्गी है। लाखों सैलानी यहां आते हैं और इससे देश की अर्थव्यवस्था को बहुत बड़ा फायदा होता है। ऐसे इलाके को अनदेखा करना मतलब पूरे पर्यटन उद्योग को खतरे में डालना।
क्या हालात और खराब हो सकते हैं?
अगर स्थानीय नाराज़गी और बढ़ती रही तो इसका असर राजनीति और निवेश दोनों पर पड़ सकता है। पर्यटक घट सकते हैं, नौकरियां रुक सकती हैं, और बुनियादी ढांचा चरमरा सकता है।
निष्कर्ष
जिस पैकेज की उम्मीद थी कि वह राहत देगा, वह एक गंभीर अनदेखी की कहानी बन गया। फुकेत को जो रकम मिली, वह उसकी आर्थिक स्थिति और योगदान के मुकाबले एक मजाक लगती है। इसका जवाब? एक बुलंद मांग: विकेंद्रीकरण, न्यायसंगत बजट, और स्थानीय नियंत्रण। जब तक ऐसा नहीं होता, फुकेत दूसरों की दावत में चवन्नी पर ही गुजारा करता रहेगा।