कंबोडियाई कार्यकर्ता एम पिसेथ, उम्र 37 साल, ने अपनी सरकार और सेना की आलोचना करने के बाद थाईलैंड में छिपकर रहना शुरू कर दिया है। पिसेथ थाईलैंड स्थित Cambodian International Youth Network के प्रमुख हैं। उन्होंने एक TikTok वीडियो में कंबोडियाई सैनिकों का मजाक उड़ाया था, जिसमें कहा गया कि वे कुपोषित और लड़ाई के लिए अयोग्य हैं। इसके बाद कंबोडिया के सीनेट अध्यक्ष हुन सेन ने उन पर झूठ फैलाने और सेना का अधिकारी होने का नाटक करने का आरोप लगाया।
वीडियो से निर्वासन तक – पूरी कहानी
पिसेथ के वीडियो में एक पूर्व सैनिक की गवाही थी, जो थाई-कंबोडियाई सीमा पर तैनात था। वीडियो के तुरंत बाद, उन पर कानूनी कार्रवाई शुरू हो गई—उन्हें नकली पहचान का आरोप झेलना पड़ा और गिरफ्तारी की आशंका के चलते उन्होंने छिपने का फैसला किया। यह कोई नई बात नहीं है—कई कंबोडियाई कार्यकर्ता सुरक्षा की तलाश में थाईलैंड की ओर रुख कर चुके हैं।
अस्थायी शरण का ठिकाना
थाईलैंड अक्सर कंबोडियाई कार्यकर्ताओं के लिए शरणस्थल बनता है, लेकिन स्थिति बहुत जटिल है। थाईलैंड ने संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं, वहां कोई स्थायी शरण नीति नहीं है, और अक्सर कार्यकर्ताओं को उनके देश वापस भेज दिया जाता है—जहां उन्हें गिरफ्तारी, अन्यायपूर्ण मुकदमे और कभी-कभी यातना का सामना करना पड़ता है।
हाल ही में थाईलैंड ने छह कार्यकर्ताओं और एक बच्चे को गिरफ्तार कर कंबोडिया वापस भेजा, जिससे यह स्पष्ट होता है कि यहां भी सुरक्षा की गारंटी नहीं है।
क्षेत्रीय दमन का जाल
यह सिर्फ एक कार्यकर्ता की कहानी नहीं है। यह पूरे दक्षिण एशिया में फैलते “अंतरराष्ट्रीय दमन” का हिस्सा है—जब सरकारें अपने आलोचकों को विदेशों तक खोज निकालती हैं। थाई अधिकारियों ने कंबोडिया, वियतनाम और लाओस के साथ मिलकर इस तरह की गतिविधियों को अंजाम दिया है।
दक्षिण-पूर्व एशिया में कार्यकर्ताओं की सुरक्षा की तुलना
देश | शरण नीति | जोखिम स्तर | प्रमुख मामले |
---|---|---|---|
कंबोडिया | कोई सुरक्षा नहीं; कार्यकर्ताओं पर कड़ा दमन | बेहद उच्च | गिरफ्तारियां, यातना, जाली मुकदमे |
थाईलैंड | औपचारिक शरण कानून नहीं | मध्यम से उच्च | कुछ को शरण दी, कुछ को निर्वासित किया |
लाओस/वियतनाम | विरोधियों को वापस भेजने में सहयोगी | बहुत अधिक | कार्यकर्ताओं को ट्रैक कर निर्वासित किया गया |
एम पिसेथ और अन्य कार्यकर्ताओं का आगे क्या?
पिसेथ अब UNHCR के जरिए किसी सुरक्षित देश में पुनर्वास की तैयारी कर रहे हैं। लेकिन तब तक वे छिपे हुए हैं, कानूनी और शारीरिक खतरे के बीच जी रहे हैं। क्षेत्र में ऐसे कई कार्यकर्ता हैं जो सीमाओं पर नजर रखने, जबरन निर्वासन और कानूनी उत्पीड़न का शिकार हो रहे हैं।
थाईलैंड की नई सरकार ने मानवाधिकारों की रक्षा का वादा किया है, लेकिन वास्तविकता में कंबोडियाई कार्यकर्ताओं की स्थिति इसे चुनौती देती है।
निष्कर्ष
एम पिसेथ की कहानी हमें याद दिलाती है कि कंबोडिया में सच बोलना जोखिम भरा है। बिना किसी औपचारिक शरण नीति के थाईलैंड में कार्यकर्ता असुरक्षित हैं। दक्षिण-पूर्व एशिया में जब दमन सीमाएं पार करता है, तो यह जरूरी हो जाता है कि सभी देश मानवता और न्याय के मूल्यों की रक्षा करें।