कल्पना कीजिए, रोज़ बस एक कदम आगे बढ़ाना और ऐसे ही चलते-चलते सैकड़ों किलोमीटर का सफर तय करना। यही किया थाईलैंड के छह सदस्यों वाले एक परिवार ने। उन्होंने दक्षिणी प्रांत सुरत थानी के चाय्या ज़िले से लेकर राजधानी बैंकॉक तक करीब 600 किलोमीटर की पैदल यात्रा की। उनका उद्देश्य? रानी माता सिरिकित को ग्रैंड पैलेस में श्रद्धांजलि देना।
इस यात्रा के पीछे विचार था उनके लंबे सार्वजनिक सेवा काल के लिए कृतज्ञता जताना और वह सम्मान दिखाना जो थाई जनता उनके प्रति रखती है।
कौन हैं यह परिवार और प्रेरणा क्या थी?
यह परिवार 62 वर्षीय पिता सानोए कोएडकैव, उनके 27 वर्षीय बेटे सित्तिचाई थोंग्सुवन, और चार अन्य सदस्य (25 से 39 वर्ष की आयु के बीच) सभी एक ही परिवार के सदस्य हैं।
उनकी प्रेरणा? सित्तिचाई ने कहा कि उनका उद्देश्य केवल बैंकॉक पहुँचना नहीं था, बल्कि एक उदाहरण पेश करना था निष्ठा, कृतज्ञता और स्मरण का।
उन्होंने बताया कि वे “ग्रैंड पैलेस में आयोजित श्रद्धांजलि समारोह में भाग लेना” चाहते थे। बारिश, थकान और घिसे हुए जूतों के बावजूद, वे गर्व महसूस कर रहे थे कि वे कुछ अर्थपूर्ण कर रहे हैं।
सबसे भावनात्मक बात पिता सानोए कैंसर से जूझ रहे हैं, फिर भी उन्होंने अपने परिवार के साथ इस कठिन यात्रा में हिस्सा लिया। यह कहानी को और भी प्रेरणादायक बनाता है।
मार्ग, चुनौतियाँ और सहायता
उनकी यात्रा चाय्या ज़िले (सुरत थानी) से शुरू हुई, और वे रोज़ाना लगभग 30–50 किमी चलने का लक्ष्य रखते थे।
| विवरण | जानकारी |
|---|---|
| प्रारंभिक बिंदु | चाय्या, सुरत थानी |
| गंतव्य | ग्रैंड पैलेस, बैंकॉक |
| कुल दूरी | लगभग 600 किमी |
| प्रतिदिन लक्ष्य | 30-50 किमी |
| अनुमानित अवधि | 15-20 दिन |
उनकी मदद के लिए रास्ते में कई लोग आगे आए। जब वे चुंफोन प्रांत के लैंग सुआन ज़िले पहुँचे, तो हाईवे पुलिस ने ट्रैफ़िक नियंत्रण और सुरक्षा में मदद की। उन्होंने उन्हें बारिश से बचाने के लिए जूते और छतरियाँ भी दीं।
600 किमी चलना सिर्फ़ शारीरिक चुनौती नहीं है यह मानसिक, भावनात्मक और प्रतीकात्मक यात्रा है। हर कदम, भक्ति का एक संकेत बन जाता है।
इस यात्रा का असली अर्थ क्या है?
यह केवल एक पैदल यात्रा नहीं है यह एक जीवंत रूपक है। मानो परिवार कह रहा हो, “हम याद करते हैं, हम चलते हैं, हम सम्मान करते हैं।”
सित्तिचाई के अनुसार, यह यात्रा युवाओं के लिए एक संदेश है निष्ठा केवल बड़े आयोजनों या भाषणों में नहीं, बल्कि सादगी और कर्म में झलकती है।
यह दर्शाता है कि साधारण लोग भी अपने राष्ट्र के प्रतीकों और नेताओं के प्रति गहरी श्रद्धा रख सकते हैं।
और एक बीमार पिता का इस यात्रा में शामिल होना प्रेम, कर्तव्य और आत्मबल का प्रतीक है।
संक्षेप में, यह यात्रा विनम्र है, प्रेरणादायक है और यह सिखाती है कि कभी-कभी सच्ची श्रद्धांजलि बस एक लंबी, सच्चे दिल से की गई पैदल यात्रा होती है।
निष्कर्ष
जब हम “श्रद्धांजलि” शब्द सुनते हैं, तो हमारे दिमाग में भाषण, फूल या समारोह आते हैं। लेकिन इस परिवार ने चुना कदमों की श्रद्धांजलि।
थाईलैंड के दक्षिण से लेकर बैंकॉक तक 600 किमी की यह यात्रा इस बात का प्रमाण है कि सच्चा सम्मान केवल शब्दों में नहीं, बल्कि कर्म में होता है।
थके हुए कदम, घिसे हुए जूते, मगर अडिग इरादा यही असली भक्ति है।